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देश के अर्थ को अर्थ प्रदान करने वाले

अर्थशास्त्री के प्रोफेसर से लेकर देश के अर्थव्यवस्था को संभालने वाले 

अपनी सफलता का कारण “पढ़ाई लिखाई” बताने वाले मनमोहन अब नहीं रहे। 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के गाह गाँव, वर्तमान के पंजाब में जन्में सिख परिवार के सरदार की उपलब्धियाँ अन्गिनत है।

प्रोफेसर से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर बखूबी निभाया। यह सफर 1991 से शुरू हुआ, जब उनके फोन की घंटी बजी और उन्हें वित्त मंत्री की उपाधी मिली। यह बात तब की है जब भारत की आर्थिक स्थिति बद से बदत्तर हो गई थी। जी हाँ तभी जब भारत सरकार अपने देश का सोना गिरवी रखने के लिए बाहर भेज रही थी, और उस समय अमेरिका तक आईएमएफ में 87% वोटिंग का अधिकार रखता था। तभी मनमोहन सिंह भारत के आर्थिक मसीहा के रूप में सामने आए। प्रोफेसर साहब को इंग्लैंड में अर्थशास्त्र में ‘एडम स्मिथ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे उनके अर्थशास्त्री होने का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 

न चर्चा न रेस फिर भी देश के बने नरेश 

जी हाँ, वही मनमोहन जिनके अथक प्रयास से 1991 में उदारीकरण आया। भारत की अर्थव्यवस्था को डगमगाने से बचाया । इसके अंतर्गत भारत की आयात शुल्क व सीमा शुल्क को घटा दिया। आयात सीमा को उदार किया।  ये वही वित्तमंत्री जिसने प्रधानमंत्री के आगे बढ़कर निडरता से निर्णय लिया, आज के सम्पूर्ण भारत को खड़ा करने में पूर्ण योगदान निभाया। मनमोहन सिंह पहले ऐसे वित्तमंत्री हुए जिन्होंने 18,650 शब्दों का बजट भाषण दिया था। इसमें उन्होनें एक ऐतिहासिक बात “किसी विचार का सही समय आ जाए तो उसे कोई ताकत रोक नहीं सकती” कही। अपने जीवनकाल में इन्होंने कई महत्तवपूर्ण पद संभाले। 1991 में सर्वप्रथम वित्त मंत्री का पद संभाला उसके बाद 2004 में इन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला साथ ही अटल जी के सरकार में राज्यसभा के सांसद रहें। इनको accidental PM के नाम से भी लोग जानते हैं। प्रोफेसर से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफऱ बखूबी निभाया।   

केबल टी.वी दूरदर्शन पर चित्रहार का इंतजार करने वाले अब जी.टीवी पर सा.रे.गा.मा.पा देख पा रहे हैं ये उनहीं की देन है, साथ ही सरकारी बैंकों में कमी, प्राइवेट का विस्तार वहीं दूसरी ओर बैंकों का राष्ट्रीयकरण का पूरा श्रेय इन्हीं को जाता है। 

आज जिस आधार कार्ड को हम अपनी पहचान बनाकर फिरते हैं, जिसको  वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में लागू किया, इसकी नींव सबसे पहले मनमोहन सिंह ने रखी थी।

“ History will be kinder to me other than media ”

मनमोहन सिंह को इस बात पर पूर्ण भरोसा था कि मीडिया की तुलना में इतिहास उनके प्रति विनम्र रहेगा।  यह उनके लिए और इस देश के लिए गर्व की बात है।   

 मनमोहन सिंह के जाने से इस देश को भारी क्षति हुई। एक आर्थिक युग का अंत हो गया।       

                                                              ...नीतिका गुप्ता

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