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साइबर की दुनिया में बच्चों को कैसे रखें सुरक्षित

हाल ही में एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारत का इलेक्ट्रॉनिक की एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यानी (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री)

एक ऐसे ऐप 'सेफनेट'पर काम कर रहा है, जो माता-पिता के फोन को उनके बच्चों के फोन से जोड़ेगा ताकि वह बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रख सके ,अमूमन इस तरह की निगरानी में किसी ऐप या वेबसाइट को खोलने की अनुमति देने और बच्चे कितनी देर तक ऑनलाइन रहेंगे ,यह तय करने के प्रावधान होते हैं पर कहा जा रहा है कि सेफनेट में युटुब जैसे मंचों पर देखी गई सामग्रियों की जानकारी देने सहित फोन कॉल डिटेल व एसएमएस भी साझा किए जा सकेंगे।

'इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एसोसिएशन ऑफ इंडिया 'ने सुझाव दिया है कि यह ऐप सभी उपभोक्ताओं के फोन में डिफॉल्ट के रूप में होना चाहिए बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा एक गंभीर मसला है ,और यह बहस लाजमी है कि इंटरनेट के इस्तेमाल से बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

बच्चों पर दो तरीके के प्रभाव पड़ते हैं ,

या तो अच्छे या तो बुरे प्रभाव

वह बच्चे जो सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट का इस्तेमाल अपने पढ़ाई और जानकारी के लिए करते हैं वह इंटरनेट के अच्छे प्रभाव के शिकार होते हैं, बुरा प्रभाव उनके ऊपर पड़ता है जो इंटरनेट का इस्तेमाल अनावश्यक रूप से वीडियो देखना और तरह-तरह की हरकतें साझा करते हैं।

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा की गुत्थी सुलझाने के क्रम में नए उपकरण से हमारे सामने कुछ नई समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं, इसलिए हमें समग्रता में सोचना होगा।

सभी शिक्षक और माता-पिता यह जानते हैं कि किसी भी समाधान को बच्चे खुले दिल से स्वीकार नहीं करेंगे, वे रचनात्मक होते ,हैं और इंटरनेट का इस्तेमाल को लेकर अधिक कुशल है ,इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि बच्चे खुद अपनी सुरक्षा को लेकर उत्सुक हों।

अंत में 'यंग लीडर्स फॉर एक्टिव सिटीजनशिप के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि 80 फ़ीसदी माता-पिता इंटरनेट की दुनिया में की दुनिया खंगालने के लिए अपने बच्चों से समय-समय पर मदद मांगते रहते हैं,

लिहाजा ,

हमें पूरे परिवार पर ध्यान देना चाहिए ताकि आज के किशोर घर पर सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के प्रशिक्षक बन सके। वैसे भी आजकल के माता-पिता स्वयं रील में डूबे हुए हैं ,और उन्हें भी मदद की जरूरत पड़ती रहती है।

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